“भाजपा के भामाशाह” निर्भयचंद्र सेठ जापान बाबू का निधन, भाजपा में शोक की लहर 

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बरेली/ शाहजहांपुर। भाजपा की राजनीति के वटवृक्ष निर्भय चन्द्र सेठ “जापान बाबू” नहीं रहे। उनका स्वास्थ बीते दिनों से ख़राब चल रहा था। फोर्टिज, गुड़गांव से उनको दो हफ़्ते पहले घर ले जाने की सलाह दी गई थी। वेंटिलेटर पर ही उनको शाहजहांपुर लाया गया था। निज निवास पहुँचने पर उनकी सांसें जागृत हो गईं। उन्होंने अपनी सरजमीं पर यमराज से लडने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन काल के आगे किसकी चली है। जो इस संसार में आया है, उसको जाना है। 15 मार्च को देर रात उनकी सांस थम गईं। उनके देहावसान की ख़बर मिलते ही जामा मस्ज़िद के सामने वाली गली में उनकी कोठी पर संवेदना व्यक्त करने वालों की भीड़ लग गई।

 

जनसंघ से लेकर जनता पार्टी और फ़िर भारतीय जनता पार्टी बनने तक के सफ़र में जापान बाबू की प्रमुख भूमिका थी। जब बीजेपी का झंडा पकड़ने वाले गिने-चुने लोग हुआ करते थे…तब से उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को खाद-पानी देने का काम किया। एक समय उनकी कोठी भाजपा की सियासत की धुरी थी।। ये अलग बात है कि वह ‘सदन की सियासत’ में फिट नहीं बैठे। वह रामलहर में भी लोकसभा और उसके बाद राज्यसभा का चुनाव जीत नहीं सके। खाने-खिलाने के बेहद शौकीन जापान बाबू की कोठी पर किसी दल का ऐसा कोई नेता नहीं था, जो जाता न हो। अगर शाहजहांपुर में कोई दौरा है, तो नाश्ता, लंच या डिनर उनके घर पर ही होता था। केन्द्रीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जापान बाबू की कोठी पर गए। भाजपा के पास अपना कोई जिला कार्यालय नहीं था, तो बैठकें भी जापान बाबू की कोठी पर ही होती थीं। उनकी राय से अध्यक्ष बनाए जाते थे। जब बीजेपी सत्ता में आई तो सुसज्जित जिला कार्यालय भी रेती रोड पर बन गया। लेकिन उनकी कोठी पर बड़े नेताओं की आमद कम नहीं हुई।

 

 

हाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शाहजहांपुर आए तो दोपहर का भोजन जापान बाबू की कोठी पर ही किया। उस दौरान ही गर्रा फाटक तिराहे का कायाकल्प हुआ था। जापान बाबू की खासियत थी कि जो उनके दिल में होता था, वही ज़ुबान पर। साफ़गोई उनकी शख्सियत थी। दुराव मन मस्तिष्क में नहीं था। वह भाजपा के भामाशाह थे। जब पार्टी के कोष में दो रुपए नहीं होते थे…तब भी उनकी मदद से ही पार्टी ने संघर्ष किया। भारतीय जनता’पार्टी को पालने पोसने’ में उनका अहम योगदान रहा। भाजपा में उनका कद…पद से कहीं बड़ा था। राममंदिर आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय स्तर के तमाम नेता उनकी कोठी तक आते-जाते थे। जब से उन्होंने आगरा में सेठ काशीनाथ फर्म का शोरूम खोला… तो शाहजहांपुर की सियासत से थोड़ा अलग-थलग पड़ गए थे। उन्हें सियासत विरासत में मिली। उनके पिता विशनचंद्र सेठ हिंदू महासभा के प्रमुख नेता व सांसद रहे। शहर के कई मंदिरों के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही। चाहे बाबा विश्वनाथ हो या वनखंडी नाथ। जापान बाबू ने भी हिंदुत्व आधारित सियासत को आगे बढ़ाया। उनको कई मौके केंद्र की सियासत में काम करने के मिले, पर वह साफ़गोई के चलते भुना नहीं पाए। बढ़ती आयु में भी उनकी आदत में कोई बदलाव नहीं आया था। खाने-खिलाने का शौक, बात करने का अंदाज़ वही था। हंसी-ठिठोली उनकी आदत थी। उन्होंने एक बार मौजूदा सियासत में ख़ुद को अनफिट बताया था। वह कहते थे कि…अब न वो लोग हैं। न वैसी राजनीति। स्वार्थ आगे है। बाकी सब पीछे। जापान बाबू किसी के भइये थे तो किसी के ताऊ, चाचा, बाबू जी। अब वह सिर्फ़ यादों में रहेंगे। उनका अंतिम संस्कार 16 मार्च अपरान्ह 3.30 बजे गर्राघाट पर होगा।

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