कृषि विभाग : अफसरों की नाक के नीचे हुए घपले, फिर भी मौन साधा

सब कुछ जानते हुए भी अपने कार्यालय के बाबुओं के पक्ष में रिपोर्ट लगवाने में लगाई पूरी ताकत

सीडीओ की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी की आख्या पर उठे सवाल, वापस भेजने की चर्चा


बरेली। कृषि विभाग में अफसरों की नाक के नीचे सरकारी योजनाओं मे किसानों को मिलने वाली सब्सिडी में घपले होते रहे। बाबुओं की पत्नी और सास के नाम पर बनी फर्मों के खाते में फर्जी बिल काटकर करोड़ों की रकम ट्रांसफर की गई। यह सब जानते हुए भी कृषि विभाग के अफसर मौन साध गए। डीएम के आदेश पर सीडीओ की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने जांच शुरू की तो सबने सांठगांठ करके एक अकाउंट अफसर के जरिए पूरी जांच को प्रभावित कर दिया। उसके बाद टीम के सदस्य से सांठगांठ करके सब कुछ नियमानुसार पाया गया, की रिपोर्ट लगवा ली। इस जांच में पांच लाख रुपए लेने का ऑडियों भी वायरल हुआ, जो कृषि विभाग के गले की हड्डी बन गया।

केंद्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 45 योजनाएं चला रही है। इन योजनाओं से किसानों की आय तो दोगुनी नहीं हुई लेकिन अफसर और बाबुओं ने करोडों की बेनामी संपत्ति जरूर इकट्ठा कर ली। बीते वर्षों में कृषि विभाग की सरकारी सब्सिडी में योजनावार घपला किस तरह से किया गया। इसको सिलसिलेवार इस तरह से भी समझा जा सकता है।

आत्मा योजना :

वर्ष 2005/06 में केंद्र सरकार की ओर से इस योजना की शुरुआत हुई। योजना का मकसद किसानों को परंपरागत खेती से हटकर अत्याधुनिक तकनीक से खेती करने के लिए गांव वार किसानों को प्रशिक्षित करना था। कृषि विभाग के अफसर और बाबुओं ने सब कुछ कागजों में दिखाकर करोडों रूपए का गोलमाल कर दिया। इक्का दुक्का को छोड़कर कोई भी किसान खेती की आधुनिक तकनीक से परिचित नही हो पाया।

ऐसे हुए घपले पर घपले :

आत्मा योजना के तहत बरेली के 15 ब्लॉकों में दो फॉर्म स्कूल खोलकर प्रत्येक स्कूल में एक अचीवर किसान बनाकर कम से कम तीस किसानों को उन्नत खेती के लिए प्रशिक्षित करना था। रबी और खरीफ सीजन में प्रत्येक ब्लॉक के फॉर्म स्कूल के लिए 15000/15000 रुपए का बजट मिला। मतलब एक साल में 4.5 लाख से अधिक रुपए केवल कागज़ों से खर्च हो गए। हकीकत में कोई भी किसान अत्याधुनिक तरीके से खेती के लिए प्रशिक्षित नही किया गया। जो किसान आधुनिक तरीके से खेती कर भी रहे हैं, वह अपने बलबूते पर। प्रशिक्षण बजट को डिप्टी डायरेक्टर कृषि और विकास भवन के बाबुओं के परिवार और रिश्तेदारो के नाम से बनी मां जगदंबा और जय हनुमान नामक फर्म में ट्रांसफर करके बंदरबांट हो गया।

फसल प्रदर्शन का दिखावा :

इसमें प्रति ब्लॉक कृषि मेला लगवाकर फसल प्रदर्शन किया जाता है। किसानो को कीटनाशक दवा और बीज सब्सिडी पर देने का प्रावधान है। एक फसल प्रदर्शन में 2500 रुपए का बजट खर्च होता है। रबी और खरीफ में मिलाकर 40 फसल प्रदर्शन होने चाहिए। लेकिन ज्यादातर फसल प्रदर्शन कागजों पर ही निपट जाते है। इसमें मिले बजट बजट का गोलमाल कर लिया जाता है।

कृषि यंत्र की सब्सिडी :

किसानों को समूह में 12 लाख रुपए तक के कृषि यंत्र खरीदने पर आठ लाख और व्यक्तिगत रूप से ट्रैक्टर या कृषि यंत्र खरीदने पर छह लाख रुपए में से चार लाख रुपए तक की सब्सिडी दी जाती है। किसी भी सामान्य किसान को आज तक ट्रैक्टर की सब्सिडी नही मिली। बाबुओं ने अपनें रिश्तेदारों या फिर रूसुखदारों को ट्रैक्टर की सब्सिडी दिला दी। नबावगंज, बहेड़ी, आंवला और फरीदपुर में कई राजनीतिक दलों के बड़े नेता सीधे या फिर अपने खास लोगो को आगे करके ट्रैक्टर या बाकी कृषि यंत्रों की सब्सिडी लेने में कामयाब हो गए। बाबुओं ने नबावगंज के जिला सहकारी बैंक में एक ही क्रम से सिलसिलेवार फर्जी किसानों के खाते खुलवाकर ट्रैक्टर की सब्सिडी मंगवा ली। सब्सिडी की रकम निकालने के बाद ये खाते बंद कर दिए गए। प्रशासनिक जांच में जब तत्कालीन कमेटी अध्यक्ष गंगाराम ने डिप्टी डायरेक्टर कृषि के कार्यालय में कार्यरत बाबू से इससे संबंधित अभिलेख मांगे थे तो बाबु ने उन अभिलेखों को नही दिया। उन्होने अपनी जांच रिपोर्ट में यह सब लिखा भी है। यहां तक कि तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर कृषि ने भी उस जांच में सहयोग नहीं किया। मगर, इतना होने के बाद भी सीडीओ की अध्यक्षता में गठित जांच कमेटी के सदस्य ने अपनी जांच में सब कुछ नियमानुसार ही पाया।

बाबुओं ने लेखाकर के साथ बंद कमरे में की मंत्रणा:

सूत्रों के अनुसार जांच कमेटी की एक पक्षीय आख्या पर डीएम ने सख्त ऐतराज जताया है और रिपोर्ट वापस कर दी। साथ ही तथ्यात्मक जांच करके लाने को कहा। हालांकि इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी। इसके बाद कृषि विभाग के बाबू और जांच कमेटी के सदस्य कम लेखा से जुड़े आधिकारी ने विकास भवन और डिप्टी डायरेक्टर कृषि कार्यालय के बाबुओं से मिलकर खुद के बचने और बचाने के पहलू पर विचार विमर्श किया। सूत्रों के अनुसार इन्होने विकास भवन के दो बाबुओं को बुलाकर हड़काया भी कि उनका ट्रांसफर हुआ या हटाए गए तो कोई नहीं बचेगा। सब फंसेगे। डिप्टी डायरेक्टर कृषि के कार्यालय में मेरठ से आए एक बाबू ने भी विभागीय लेखाधिकारी के साथ मिलकर बचने की रणनीति बनाई। कृषि विभाग के लेखा अधिकारी इस मुद्दे को लेकर परेशान हैं क्योंकि फर्जी बिलों को उनके हस्ताक्षर से ही आगे बढ़ाया गया है। तब सरकारी सब्सिडी की रकम बाबुओं के रिश्तेदारों के फर्म में पहुंची।

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