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पीलीभीत/बीसलपुर: बीसलपुर का ऐतिहासिक रामलीला मंच पर नहीं बल्कि वाराणसी की तर्ज पर विशाल मैदान पर होता है। पात्र मैदान में घूमघूम कर अपनी भूमिका अदा करते हैं। लीला मंचन के लिए मेला कमेटी के पास एक विशाल मैदान है।
बीसलपुर का रामलीला मेला लगभग सवा सौ वर्ष पुराना है। मेला कई खट्टे-मीठे अनुभव संजोए हुए है। मेला कमेटी के उपाध्यक्ष वयोवृद्ध विष्णु गोयल ने बताया कि करीब सवा सौ वर्ष पूर्व बदायूं से यहां आकर बसे कटहरिया जाति के लोगों ने मेला शुरू कराया था। वे लोग गुलेश्वर नाथ मंदिर के पास पशु चराते समय रामलीला का अभिनय अपने स्तर से करते थे।
तत्कालीन तहसीलदार भूपसिंह ने कटहरिया जाति के इन चरवाहों की भावनाओं को महसूस करते हुए इनके अभिनय को वास्तविकता में बदलवा दिया। प्रारंभ के कुछ वर्षाे में यह मेला छोटे से मंच पर होता रहा। बाद में विशाल मैदान में होने लगा। इस मेले की वजह से नगर को एक विशिष्ट पहचान मिली। शुरुआत में यह मेला चंदे से होता था। वर्ष 1936 से मेले की बागडोर मोहल्ला दुबे निवासी अधिवक्ता देवीदास ने अपने हाथों में ले ली। मेले की अवधि तीन सप्ताह की होती थी। मेला कमेटी के लोगों ने मेले को आकर्षक बनाने के लिए रावण वध लीला के बाद 10 दिन की रासलीला करानी शुरू कर दी। लीला में मंचन करने वाले कलाकार मेला कमेटी से कोई भी पारिश्रमिक नहीं लेते हैं। मेला मैदान में अयोध्या, पंचवटी, शिवकुटी, लंका और अशोक वाटिका के पक्के भवन हैं। लीला मंचन के दौरान इन भवनों का इस्तेमाल किया जाता है।
वाराणसी की तर्ज पर होती है रामलीला
यहां की रामलीला मंच पर नहीं बल्कि वाराणसी की तर्ज पर रामनगर की तरह विशाल मैदान पर होता है। पात्र मैदान में घूमघूम कर अपनी भूमिका अदा करते हैं। लीला मंचन के लिए मेला कमेटी के पास एक विशाल मैदान है। रामलीला के दौरान मैदान के चारों और लोहे का मजबूत जाल लगाया जाता है।
रामादल के पात्र बनते हैं केवल ब्राह्मण
रामलीला के दौरान रामादल के सारे पात्र केवल ब्राह्मण बनते हैं। रावण दल में सभी जाति बिरादरी के लोग पात्र बनते हैं। यह परंपरा शुरू से ही चल रही है, जो अभी भी बरकरार है।
महिला पात्रों की भूमिका निभाते हैं पुरुष और किन्नर
रामलीला में सीता, उर्मिला आदि महिला पात्रों की भूमिका पुरुष कलाकार निभाते हैं। सूर्पनखा, कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा, मंदोदरी, मंथरा आदि महिलाओं की भूमिका किन्नर निभाते हैं। मेला कमेटी के व्यवस्थापक सुरेश चंद्र अग्रवाल बताते हैं कि लीला मंचन में मोहल्ला दुबे, ग्यासपुर और दुर्गाप्रसाद के लोग ही विभिन्न पात्रों की भूमिका अदा करते हैं। मोहल्ला ग्यासपुर का तो केवल एक पात्र है। बाकी सारे पात्र दुबे और दुर्गाप्रसाद के ही हैं।
अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरा भी होता है
मेले में प्रत्येक वर्ष अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरा भी होता है। इसमें देश के विभिन्न शहरों से मशहूर कवि और शायर आते हैं। कवि सम्मेलन और मुशायरा के शौकीन लोग इस कार्यक्रम की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। मेला कमेटी के उपसभापति विष्णु कुमार गोयल बताते हैं कि मोहल्ला दुर्गाप्रसाद निवासी कल्लूमल रस्तोगी की वर्ष 1986 में रावण के पात्र का अभिनय करते समय पूरा अभिनय समाप्त होने के बाद हकीकत में मौत हो गई थी। इस बात के गवाह मेला मैदान में मौजूद तत्कालीन जिलाधिकारी और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक भी थे।
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