बरेली: किसानों की सब्सिडी के बदले रिश्वत की मांग, जांच के आदेश
बरेली के मझगवां ब्लॉक में एक किसान ने कृषि विभाग के लिपिक प्रभात सक्सेना पर पांच हजार रुपये रिश्वत मांगने का आरोप लगाया है। किसान का कहना है कि जब उसने यह रकम देने से इनकार कर दिया, तो लिपिक ने रोटावेटर पर मिलने वाली सब्सिडी को रोक दिया।
किसान ने मामले की शिकायत डीएम और संयुक्त कृषि निदेशक से की, जिसके बाद जांच के आदेश दिए गए हैं।
कैसे सामने आया मामला?
मझगवां ब्लॉक के गांव शिवनगर नौगवा निवासी चेतन प्रकाश ने कृषि यंत्रीकरण योजना के तहत 1.10 लाख रुपये में रोटावेटर खरीदा था। इस योजना के तहत सरकार किसानों को 42 हजार रुपये की सब्सिडी देती है।
किसान का आरोप है कि जब वह अपनी सब्सिडी की प्रक्रिया पूरी कराने कृषि विभाग के लिपिक प्रभात सक्सेना के पास पहुंचा, तो लिपिक ने उससे पांच हजार रुपये की रिश्वत मांगी। किसान ने पैसे देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद लिपिक ने उसकी सब्सिडी रोक दी।
डीएम से शिकायत के बाद भी नहीं हुआ समाधान
किसान चेतन प्रकाश ने 20 फरवरी को डीएम और संयुक्त कृषि निदेशक को लिखित शिकायत दी थी। लेकिन, इसके बावजूद उसकी समस्या का समाधान नहीं हुआ।
इसके उलट, उप कृषि निदेशक अभिनंदन सिंह ने किसान को ही चेतावनी पत्र जारी कर दिया। इस पर किसानों में आक्रोश बढ़ गया और उन्होंने विरोध-प्रदर्शन की चेतावनी दी।
किसानों की चेतावनी: न्याय नहीं मिला तो करेंगे आंदोलन
किसान चेतन प्रकाश ने कहा कि यदि प्रशासन ने उसकी सब्सिडी दिलाने में मदद नहीं की तो वह अन्य किसानों के साथ आंदोलन करेगा। उसने 7 मार्च को डीएम कार्यालय में फिर से शिकायत दर्ज कराई और मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की।
जांच रिपोर्ट में क्या निकला?
शिकायत के बाद सहायक विकास अधिकारी मुंदरे कुमार सैनी ने इस मामले की जांच की। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि –
किसान ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी थीं।
सब्सिडी मिलने की पूरी पात्रता थी।
फिर भी लिपिक ने उसकी सब्सिडी जारी नहीं की।
जांच रिपोर्ट उप निदेशक कार्यालय को सौंप दी गई है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
संयुक्त कृषि निदेशक राजेश कुमार द्विवेदी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उप कृषि निदेशक को विस्तृत जांच करने और रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए।
वहीं, लिपिक प्रभात सक्सेना ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को निराधार बताया और कहा कि वह जांच में अपना पक्ष स्पष्ट करेंगे।
किसानों के हितों पर सवाल
यह मामला किसानों के लिए सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार को उजागर करता है। यदि किसान की शिकायत सही पाई जाती है, तो यह प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
अब आगे क्या होगा?
प्रशासन की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि किसान का आरोप सही है या लिपिक निर्दोष हैं।
यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो लिपिक के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हो सकती है।
यदि किसान को न्याय नहीं मिला तो, इस मामले में किसान संगठन भी कूद सकते हैं और बड़ा आंदोलन हो सकता है।
निष्कर्ष
सरकार किसानों की सहायता के लिए योजनाएं तो लागू कर रही है, लेकिन अगर अधिकारी और कर्मचारी रिश्वत मांगकर किसानों को उनके हक से वंचित कर रहे हैं, तो यह प्रशासनिक व्यवस्था की बड़ी विफलता है। इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई ही किसानों में विश्वास बहाल कर सकती है।
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