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मस्जिद गूलर वाली में जश्न-ए-मुक़म्मल-ए-क़ुरान का शानदार आयोजन, हाफ़िज़ अरमान क़ादरी और इमाम आबिद रज़ा का हुआ सम्मान

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बरेली, पुराना शहर। रमज़ान के मुक़द्दस महीने में शहर भर की मस्जिदों में क़ुरान-ए-पाक की तिलावत और तरावीह की महफ़िलें सज रही हैं। इसी सिलसिले में पुराना शहर के बालजती कुआं स्थित मस्जिद गूलर वाली में छठे रोज़े को क़ुरान मुक़म्मल होने की खुशी में जश्न-ए-मुक़म्मल-ए-क़ुरान का शानदार आयोजन किया गया।

 

इस मौके पर मस्जिद में ख़त्म शरीफ़ की तिलावत हुई और रमज़ान की बरकतों को बयान करते हुए मुल्क में अमन-चैन और भाईचारे की दुआएं मांगी गईं। इस मौके पर तरावीह में क़ुरान सुनाने वाले जनाब हाफ़िज़ अरमान क़ादरी साहब और मस्जिद के इमाम जनाब आबिद रज़ा साहब को फूलों की मालाओं से नवाज़ा गया और दस्तारबंदी कर सम्मानित किया गया। मस्जिद कमेटी और अकीदतमंदों की ओर से दोनों हज़रात को तोहफ़े और नज़राने भी पेश किए गए।

शहर में सबसे पहले मुक़म्मल होता है क़ुरान

मस्जिद गूलर वाली को तेज़ तरावीह और जल्दी क़ुरान मुक़म्मल करने के लिए जाना जाता है। मस्जिद कमेटी के ज़िम्मेदारों तमहीद पठान और सैय्यद हसन ने बताया कि यह मस्जिद पूरे शहर में सबसे पहले क़ुरान मुक़म्मल करने के लिए मशहूर है। यहाँ छठे रोज़े को ही क़ुरान मुक़म्मल हो जाता है, जिसकी वजह से बड़ी तादाद में लोग दूर-दराज़ से आकर यहाँ तरावीह में शामिल होते हैं।

 

इस मस्जिद में तरावीह पढ़ने वालों में व्यापारी वर्ग के लोग ख़ासतौर पर शामिल होते हैं क्योंकि जल्दी क़ुरान मुक़म्मल होने की वजह से उन्हें अपने कारोबार और इबादत में संतुलन बनाने में आसानी होती है।

 

हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल

मस्जिद गूलर वाली सिर्फ़ इबादत का केंद्र ही नहीं बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की मिसाल भी पेश करती है। यह देखकर बेहद ख़ुशी होती है कि तरावीह पढ़ने आने वाले लोगों की गाड़ियों की पार्किंग व्यवस्था में हिंदू भाइयों का भी विशेष सहयोग रहता है। यह आपसी भाईचारे की एक बेहतरीन मिसाल है, जिससे यह संदेश जाता है कि इंसानियत और मोहब्बत हर धर्म से ऊपर है।

 

जश्न-ए-मुक़म्मल-ए-क़ुरान में उलेमा और नातख़्वानों की शिरकत

क़ुरान मुक़म्मल होने के बाद एक शानदार जलसे का आयोजन किया गया, जिसमें शहर भर के उलेमा, मुकर्रिर और नातख़्वान शामिल हुए। उलेमाओं ने अपनी तक़रीरों में रमज़ान की नेमतों, क़ुरान की फज़ीलत और इस पाक महीने की अहमियत पर रोशनी डाली।

 

इसके अलावा, नातख़्वानी का भी खास एहतिमाम किया गया, जिसमें आज़म रज़ा तहसीनी, नईम रज़ा तहसीनी और शहर के अन्य मशहूर नातख़्वानों ने अपनी खूबसूरत आवाज़ में नाते-रसूल सुनाकर समां बांध दिया।

 

मरहूम डॉ. एस.यू. चिश्ती के लिए ईसाले सवाब

मस्जिद गूलर वाली की कमेटी ने बताया कि मस्जिद के पूर्व मुतावल्ली मरहूम डॉ. एस.यू. चिश्ती साहब का दो साल पहले इंतक़ाल हो गया था। उनकी कमी मस्जिद के हर काम में महसूस होती है, ख़ासतौर पर रमज़ान के दौरान।

 

उनकी रूह को सवाब पहुँचाने के लिए खास दुआ की गई और उनके लिए ईसाले सवाब का एहतिमाम किया गया। मस्जिद कमेटी के सदस्यों का कहना था कि उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो पाएगी।

 

मुल्क में अमन-चैन और बरकत की दुआ

जलसे के इख़्तिताम पर हाफ़िज़ अरमान क़ादरी, इमाम आबिद रज़ा और उलेमाओं ने मुल्क की सलामती, अमन-चैन, भाईचारे और हर आफ़त से हिफ़ाज़त की दुआ करवाई।

 

इस मौके पर विशेष रूप से मौजूद रहे:

हाफ़िज़ अरमान क़ादरी (तरावीह में क़ुरान मुकम्मल करने वाले), मस्जिद इमाम जनाब आबिद रज़ा साहब,अब्दुल मोईद (ख़दांची),तमहीद पठान (मस्जिद कमेटी),सैय्यद हसन, मो० असलम, अदीब मियां,आरिश अंसारी, अयान अंसारी, रिज़वान अंसारी,सुब्हान अंसारी, अनस अंसारी, हयात ख़ान।

 

मस्जिद गूलर वाली की मस्जिद कमेटी ने क्या कहा?

तमहीद पठान और सैय्यद हसन ने बताया कि मस्जिद गूलर वाली में रमज़ान के दौरान हमेशा एक खास रौनक रहती है। यहाँ तरावीह की नमाज़ में बड़ी संख्या में लोग शिरकत करते हैं और छठे रोज़े को क़ुरान मुकम्मल होने की वजह से दूर-दराज़ के लोग भी यहाँ इबादत के लिए आते हैं।

 

उन्होंने कहा कि मस्जिद कमेटी का मक़सद इबादत के साथ-साथ लोगों में भाईचारा और मोहब्बत का पैग़ाम देना है, और हम आगे भी इसी राह पर चलते रहेंगे।

 

यह जलसा सिर्फ़ क़ुरान मुकम्मल होने का जश्न नहीं था, बल्कि मोहब्बत, भाईचारे और अमन का संदेश भी था। मस्जिद गूलर वाली ने एक बार फिर यह साबित किया कि इबादत सिर्फ़ नमाज़ तक सीमित नहीं, बल्कि इंसानियत और आपसी भाईचारे की हिफ़ाज़त भी एक अहम इबादत है।

 

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