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चंडीगढ़। हरियाणा का लिंगानुपात एक बार फिर से निचले स्तर पर पहुँच गया है, जो राज्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में जन्म के समय लिंगानुपात 910 तक गिर गया, जो आठ वर्षों में सबसे कम है। यह आंकड़ा 2016 के बाद से सबसे निचला स्तर है, जब हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात 900 था।
हरियाणा में लिंगानुपात की यह समस्या एक ऐसे राज्य के लिए बड़ा झटका है, जहाँ पहले ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनामी झेली जा चुकी है। राज्य में 2024 के पहले 10 महीनों में, अक्टूबर तक, लिंगानुपात 905 दर्ज किया गया, जो पिछले साल से 11 अंक कम है। यह गिरावट कई कारणों से जुड़ी हुई है, जिनमें सामाजिक प्राथमिकताएँ और कानूनी प्रवर्तन की कमजोरियाँ शामिल हैं।
सामाजिक प्राथमिकताएँ और लड़कियों की अवमूल्यन
हरियाणा में, लड़कों को लड़कियों के मुकाबले ज्यादा महत्व दिया जाता है। इसके पीछे की मानसिकता है कि लड़कियाँ परिवार के लिए बोझ हैं क्योंकि उनके विवाह में दहेज देना पड़ता है, जबकि लड़के परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत करते हैं। इसके अलावा, लड़कियों को भागकर शादी करने या परिवार को आर्थिक रूप से सहायता न कर पाने के डर से उनकी चाहत कम हो जाती है।
कानूनी प्रयास और उनकी सीमाएँ
पीएनडीटी एक्ट (प्री-कॉन्सेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स एक्ट, 1994) के तहत कन्या भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाने की कोशिश की गई है, लेकिन हाल के वर्षों में इस कानून का क्रियान्वयन ढीला पड़ गया है। हरियाणा के आसपास के राज्यों में अल्ट्रासाउंड संचालक और गर्भपात केंद्र फल-फूल रहे हैं, जहाँ हरियाणा के लोग दलालों के माध्यम से पहुँचते हैं और लिंग जांच करवाते हैं। यहाँ तक कि अल्ट्रासाउंड संचालक पैसे के लिए गलत जानकारी देकर गर्भपात करवाते हैं, जिससे कई मामलों में लड़कों को लड़की बताकर उनकी हत्या हो जाती है।
सरकारी प्रयास और उनकी प्रभावशीलता
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में शुरू किया था, ने 2019 तक लिंगानुपात में 923 तक सुधार किया था, लेकिन 2020 से फिर से गिरावट शुरू हो गई है। इसके अलावा, सुकन्या समृद्धि योजना जैसी पहलें भी की गईं, जिसमें बच्ची के जन्म पर 21,000 रुपये की एकमुश्त राशि और बैंक खाता खोलने का प्रावधान था। फिर भी, इन प्रयासों के बावजूद, सामाजिक मानसिकता में बदलाव नहीं आया है।
आर्थिक विकास के बावजूद सामाजिक पिछड़ापन
हरियाणा राज्य ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में काफी प्रगति की है, लेकिन लिंगानुपात की स्थिति इस बात का संकेत है कि आर्थिक समृद्धि सामाजिक मानसिकता को नहीं बदल सकी है। ग्रामीण इलाकों में, जहाँ परंपराओं की जड़ें गहरी हैं, लड़कियों को अभी भी कम मूल्यवान समझा जाता है।
कार्यकर्ताओं की चिंता और सुधार के प्रयास
सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों ने हाल के आंकड़ों पर चिंता जताई है, हालांकि राज्य के अधिकारियों ने इसे ‘मामूली उतार-चढ़ाव’ करार दिया है। वे मानते हैं कि लिंगानुपात में गिरावट को रोकने के लिए नियमों का सख्त प्रवर्तन और सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है। साथ ही, लड़कियों के प्रति दृष्टिकोण में मौलिक परिवर्तन के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में और काम करना जरूरी है।
हरियाणा में लिंगानुपात की समस्या एक जटिल मुद्दा है, जिसका समाधान सामाजिक, कानूनी और आर्थिक पहलुओं के समन्वित प्रयासों से ही हो सकता है। जब तक समाज में लड़कों और लड़कियों के प्रति भेदभाव की मानसिकता नहीं बदलती, हरियाणा की ‘सुकन्या समृद्धि’ संकट में बनी रहेगी।
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