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प्रयागराज: कुंभ मेले के पावन वातावरण में आगरा की एक 14 वर्षीय लड़की, रेखा ढाकरे, ने संन्यास का व्रत लिया था, लेकिन यह निर्णय उनके और उनके परिवार के जीवन में एक विवादास्पद मोड़ लेकर आया। रेखा, जो अब साध्वी रेखा के नाम से जानी जाती हैं, को महंत कौशल गिरी ने संन्यास दीक्षा दी थी।
विवाद की पृष्ठभूमि: रेखा ढाकरे का परिवार आगरा में एक जाना-माना नाम है, जो पेठा के व्यवसाय से जुड़ा है। रेखा की इच्छा थी कि वे अपना जीवन आध्यात्मिक पथ पर समर्पित करें, जिसने उन्हें कुंभ मेले में जूना अखाड़ा की ओर आकर्षित किया। महंत कौशल गिरी, जो जूना अखाड़ा के प्रसिद्ध संतों में से एक हैं, ने उन्हें दीक्षा दी।
जूना अखाड़ा की प्रतिक्रिया: हालांकि, इस दीक्षा को जूना अखाड़ा ने अवैध घोषित कर दिया। अखाड़े ने स्पष्ट किया कि उनकी परंपरा में नाबालिगों को संन्यास देने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बाद, महंत कौशल गिरी को अखाड़े से 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया, जो इस प्रकार के मामलों में एक बहुत कठोर कदम है। यह कार्रवाई न केवल महंत कौशल गिरी के करियर को प्रभावित करेगी बल्कि जूना अखाड़ा के नियमों के प्रति उनके पालन का सख्त संदेश भी देती है।
आध्यात्मिक और सामाजिक पहलू: यह घटना आध्यात्मिक अभ्यासों के साथ-साथ सामाजिक और कानूनी मुद्दों को भी उठाती है। संन्यास का मार्ग चुनना एक गंभीर निर्णय है जिसके लिए आमतौर पर वयस्क होने की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह जीवन का एक पूर्ण समर्पण है। नाबालिग होने के कारण, रेखा की सहमति और उनके द्वारा लिया गया निर्णय विवाद का विषय बन गया।
सामाजिक प्रतिक्रिया: समाज में इस घटना को लेकर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं। एक ओर, कुछ लोग रेखा के आध्यात्मिक पथ को सम्मान करते हुए उनकी स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं, जबकि दूसरी ओर, कई लोगों ने नाबालिग को संन्यास देने के निर्णय की आलोचना की है, यह कहते हुए कि यह बच्चे के हित में नहीं हो सकता।
कानूनी और नैतिक सवाल: यह मामला कानूनी और नैतिक प्रश्न भी उठाता है। नाबालिगों की सहमति, उनके अधिकार, और धार्मिक संस्थाओं की जिम्मेदारियों पर विचार करना आवश्यक है। इस विवाद ने भारतीय कानूनी प्रणाली के संदर्भ में बाल अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन की बहस को भी प्रेरित किया है।
निष्कर्ष: रेखा ढाकरे की संन्यास दीक्षा और उसके बाद की घटनाओं ने हिंदू धर्म के अभ्यासों, विशेषकर संन्यास के पवित्र अनुष्ठान, के बारे में एक व्यापक बहस शुरू की है। जबकि जूना अखाड़ा ने अपनी परंपरा की रक्षा की है, यह मामला अभी भी हिंदू समाज, कानूनी विशेषज्ञों और आध्यात्मिक नेताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
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