उझारी में शेअरी नशिस्त का आयोजन
रिपोर्टर / मौ. अज़ीम
अमरोहा । जनपद के नगर उझारी भूरे कुरेशी बज़्मे उर्दू अदब की जानिब से मोहल्ला सादात, कस्बा उझारी में एक शेअरी नशिस्त का आयोजन किया गया। जिसका आग़ाज़ डॉ० फैसल शुजाअत ने नात ए पाक पढ़कर किया।
डॉ० नदीम मलिक ने अपना कलाम पेश करते हुए कहा- पाबंदियां जमाने ने हम पर लगायी हैं, वो भी है बेक़रार इधर बेक़रार मैं। शहाबुद्दीन सैफी ने अपने कलाम में कहा- मेरे दिल की अजीबो गरीब चाहत है, यह इस तरह से किसी पर फिदा नहीं होता। शाकिर मसऊदी ने कहा- वो जफाओं के खंजर चलाते रहे, हम भी रस्मे उल्फत निभाते रहे। डॉ० फैसल शुजाअत ने कहा- इश्क करते हो जान लो ये भी, इसका सजदा कज़ा नहीं होता। मास्टर मौ० असलम ने अपना कलाम यूं पेश किया- वो आएंगे एक दिन हमें देखने को, ग़मो को हमारे जो झुटला रहे हैं। जफर गनी ने कहा- बहुत दुख होगा तुम्हें सुनके कहानी मेरी, यह बुढ़ापा है मगर क्या थी जवानी मेरी। इफ्तखार अहमद ने अपने कलाम में कहा- दिन है तो रात भी होगी घटा है तो बरसात भी होगी, मेरे अजीज़ अगर जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी। निजामुद्दीन सैफी “निज़ाम” ने अपना कलाम इस तरह पेश किया- काश चेहरा हिजाब में होता, जख्म दिल का हरा नहीं होता। उमर अब्दुल्ला सिंधी ने अपने कलाम में कहा- बेवजाह मां की डांट खाता हूं, दिल से बचपन जुदा नहीं होता। अलाउद्दीन सैफी ने अपने कालम में कहा- मौत का झोंका उड़ा कर ले गया, जिंदगी बस हाथ मल कर रह गई। चमन हैदर बाक़री ने अपने कलाम में कहा- खुद को महदूद कर ले अपने तक, कोई ऐसा दिया नहीं होता। इस अवसर पर मुख्य रूप से मौ० फहीम कस्सार, जावेद अली, साजिद कुरैशी, अब्दुल शकूर सैफी आदि मौजूद रहे। अध्यक्षता चमन हैदर बाक़री ने तथा संचालन अलाउद्दीन सैफी ने किया।
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